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Saturday, March 21, 2015

साधारण युवक

एक गाँव में कुछ दूर पर नदी बहती थी जहाँ से गाँव वाले पीने का पानी ले जाया करते थे . इसी तरह तीन महिलाएं घर की जरुरत के लिए पानी भर कर ला रही थी. तीनों ने आपस में बातचीत प्रारम्भ की.

पहली महिला ने कहा-" मेरा पुत्र बहुत बड़ा विद्वान् है, आज तक कोई भी उसे शास्त्रार्थ में नही हरा सका है"

दूसरी महिला भी कहाँ पीछे रही बोली -" हाँ , बहन!, मेरा पुत्र भी बहुत चतुर है, व्यवसाय में उसका कोई सानी नही, उसके व्यवसाय सँभालने के बाद व्यापार में बहुत प्रगति हुई है. "
तीसरी महिला चुप ही रही .

" क्यों बहन , तुम अपने पुत्र के बारे में कुछ नही कह रही ,उसकी योग्यता के बारे में भी तो हमें कुछ बताओ " दोनों महिलाओं ने उससे कहा.

सकुचाते हुए तीसरी महिला ने कहा-" क्या कहूँ बहन , मेरा पुत्र बहुत ही साधारण युवक है, अपनी शिक्षा के अलावा घर के काम काज में अपने पिता का हाथ बटाता है, कभी कभी जंगल से लकडिया भी बीन कर लाता है"
अभी वे थोड़ी दूर ही चली थी की दोनों महिलाओं के विद्वान् और चतुर पुत्र साथ जाते हुए रास्ते में मिल गए. दोनों महिलाओं ने गदगद होते हुए अपने पुत्र का परिचय कराया, बहुत विनम्रता से उन्होंने तीनो माताओं को प्रणाम किया और अपनी राह चले गए.

उन्होंने कुछ दूरी ही तय की ही थी कि अचानक तीसरी महिला का पुत्र वहां आ पहुँचा, पास आने पर बहुत संकोच के साथ उस महिला ने अपने पुत्र का परिचय दिया ,उस युवक ने सभी को विनम्रता से प्रणाम किया और बोला-
" आप सभी माताएं इस तपती दुपहरी में इतनी दूरी तय कर आयी है लाईये , कुछ बोझ मैं भी बटा दू".
और उन महिलाओं के मना करते रहने के बावजूद उन सबसे एक एक पानी का घड़ा ले कर अपने सिर पर रख लिया.

अब दोनों माताएं शर्मिंदा थी." दोनों ने बोला , तुम तो कहती थी तुम्हारा पुत्र साधारण है. हमारे विद्वान् पुत्र तो हमारे भार को अनदेखा कर चले गए मगर तुम्हारे पुत्र से तो न सिर्फ़ तुम्हारा अपितु हमारा भार भी अपने कन्धों पर ले लिया बहन , तुम धन्य हो , तुम्हारा पुत्र तो अद्वितीय व असाधारण है सपूत की माता कहलाने की सच्ची अधिकारिणी तो सिर्फ़ तुम ही हो."

साधारण में भी असाधारण मनुष्यों का दर्शन लाभ हमें यत्र तत्र होता ही है हम अपने जीवन में कितने सफल हैं सिर्फ़ यही मायने नही रखता. हमारा जीवन दूसरों के लिए कितना मायने रखता है.यह अधिक महत्वपूर्ण है

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